झूम कृषि किसे कहते हैं
मुख्यतया उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पेड़ों एवं वनस्पतियों को काटकर उस स्थान को साफ करके बची हुई वनस्पतियों को जला कर उस स्थान पर जो कृषि की जाती है उसे 'स्थानांतरी' (Shifting Cultivation) या 'झूम कृषि' कहते हैं।
इस क्रिया में जली हुई पेड़ों एवं वनस्पतियों की राख उर्वरक का कार्य करती है। साफ की गई भूमि पर पुराने उपकरणों यथा- लकड़ी के हल आदि से जुताई करके बीज बो दिए जाते हैं।
फसल पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर होती है। ऐसी कृषि सारे पूर्वोत्तर भारत में पहाड़ियों पर आदिम जातियों द्वारा की जाती है।
झूम कृषि को अंग्रेजी में "झूमिंग अग्रिकल्चर" (ZBNF) या "झूमिंग फार्मिंग" (ZFM) के नाम से जाना जाता है। झूम कृषि एक सस्ती, बायोडाइवर्सिटी संरक्षण, उच्च उपजाऊ और सतत कृषि प्रणाली है जिसमें किसान जलवायु के अनुकूल सांद्रता के साथ जैविक खेती की प्रक्रिया को अनुसरण करते हैं।
झूम कृषि का आधार यह है कि पृथ्वी की मृदा को खाद और जीवाणुओं के साथ बांधने के लिए अन्य पौधों के साथ संगठित किए गए पौधों की वनस्पति का उपयोग किया जाए। इस प्रकार, झूम कृषि का उद्देश्य मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है, उपज की वृद्धि करना है और कृषि उत्पादन को सतत बनाए रखना है, जबकि प्राकृतिक संसाधनों को कम से कम खपत में उपयोग किया जाता है।
झूम कृषि का उद्घाटन महाराष्ट्र के कृषि विज्ञानी श्री सुभाष पालेकर द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य परंपरागत खेती पद्धतियों को छोड़कर प्रकृतिक और जैविक
प्रणालियों को बढ़ावा देना है और कृषि उत्पादन में सुधार करके किसानों को सतत आय सुनिश्चित करना है। झूम कृषि में परंपरागत खेती तकनीकों, विभिन्न पौधों के संरक्षण और संवर्धन के लिए उपयुक्त फसलों के उपयोग, और जलवायु एवं मृदा सांद्रता के अनुकूल अनुसार कृषि कार्यक्रमों के प्रयोग का उपयोग किया जाता है।
(a) जामुन की खेती
(b) सीढ़ीनुमा खेती
(c) स्थानांतरण कृषि
(d) छत खेती
उत्तर-(c)
Que. झूम कृषि अभी भी कहां प्रचलित है?
(a) मिजोरम
(c) मणिपुर
(b) नगालैंड
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(d)